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Rudra Trailer Out : अजय एक बार फिर कॉप लुक में

वेब सीरीज रुद्र द एज ऑफ डार्कनेस का ट्रेलर रिलीज(“Rudra - The Edge of Darkness"). इस वेब सीरीज से अजय देवगन (Ajay Devgn, Digital Debut) कर रहे हैं डिजिटल डेब्यू. रुद्र में अजय एक बार फिर कॉप लुक में नजर आ रहे हैं . अजय के अलावा में राशि खन्ना (Raashi Khanna), ईशा देओल (Esha Deol), अतुल कुलकर्णी, अश्विनी कालसेकर, तरुण गहलोत, आशीष विद्यार्थी और सत्यदीप मिश्रा प्रमुख भूमिकाओं में नज़र आएंगे. ‛रुद्र- द एज ऑफ डार्कनेस’ ब्रिटिश वेब सीरीज ‘लूथर’ की रीमेक है. ('Rudra - The Age of Darkness' is a remake of the British web series 'Luther'.)

विज्ञान को जीवन में शामिल करना आवश्यक

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर हर जगह तरह तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. हर जगह विज्ञान पर भाषण दिया गया और विज्ञान के प्रभाव को बढ़ाने की बात कही गयी. भारत के दृष्टी से देखा जाए तो भारत को 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला था. 1930 में वैज्ञानिक-प्राध्यापक डॉ. सी.व्ही. रामन को नोबेल पुरस्कार मिला था तब से अब तक 86 साल हुए है पर भारत का नोबेल पुरस्कार का सूखा अभी भी कायम है. 1930 के बाद से भारत को कोई भी ऐसे वैज्ञानिक नहीं मिले जिन्होने विज्ञान के क्षेत्र में अपना योगदान दिया हो और नोबेल पुरस्कर लेकर आये हो. अब भारत के लिए इसरो ने कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं. इसरो भारत के लिए विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर योगदान दे रहा है. इसरो की चर्चा दुनिया भर में हो रही और सभी जगह उसकी प्रशंसा हो रही है. भारत के लिए विज्ञान के नजरिए यही एक अच्छी बात रही है, अन्यथा विज्ञान के क्षेत्र में कोई खास योगदान नजर नहीं आ रहा है.

वैज्ञानिक-प्राध्यापक डॉ. सी.व्ही. रामन के बारे में - 28 फरवरी को ‘रमन प्रभाव' की खोज हुई थी. इसीलिए आज विज्ञान दिवस को मनाया जाता है. रमन प्रभाव की खोज महान भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (सीवी रमन) ने की थी. इस महत्‍वपूर्ण खोज के लिए सीवी रमन को 1930 में भौतिकी के नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था. इस खोज के सम्‍मान में 1986 से राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है. सर सीवी रमन का जन्‍म ब्रिटिश भारत में तत्‍कालीन मद्रास प्रेजीडेंसी (तमिलनाडु) में 7 नवंबर 1888 को हुआ था. उन्‍होंने प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में अविस्‍मरणीय योगदान दिया. इसके तहत जब प्रकाश किसी पारदर्शी मैटेरियल से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश की तरंगदैर्ध्‍य में बदलाव दिखता है. इसी को रमन प्रभाव कहा जाता है. इस महत्‍वपूर्ण खोज के लिए 1954 में भारत ने उनको सर्वोच्‍च सम्‍मान भारत रत्‍न से नवाजा.

1917 में सरकारी नौकरी से इस्‍तीफा देने के बाद वह कलकत्‍ता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हो गए. उसी दौरान उन्‍होंने कलकत्‍ता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्‍टीवेशन ऑफ साइंस(आईएसीएस) में अपना शोध कार्य निरंतर जारी रखा. यहीं पर 28 फरवरी, 1928 को उन्‍होंने केएस कृष्‍णन समेत अन्‍य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रमन प्रभाव की खोज की.

सीवी रमन मशहूर वैज्ञानिक सुब्रमण्‍यन चंद्रशेखर के चाचा थे. 'चंद्रशेखर लिमिट' की खोज के लिए सुब्रमण्‍यन को 1983 में नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. सुब्रमण्‍यन को नोबेल मिलना अच्छा था किन्तु उनकी नागरिकता अमेरिका थी.  सीवी रमन का 82 साल की आयु में 1970 में निधन हो गया.

1930 के बाद नोबेल पुरस्कार न मिल पाने का कारण भारत में मौजूद अंधविश्वास, परंपरा रही. स्कूल, कॉलेज में यूं तो विज्ञान की बाते सिखाई जाती है किन्तु असल जिंदगी में उसपर अमल नहीं हो पाता. भारत आज भी इन सभी का खामियाजा भुगत रहा है इसके बावजूद भारत इन सबसे बाहर आने के लिए तैयार नहीं है. भारत के विकास में विज्ञान एक बड़ा किरदार निभा सकता है. भारत में नए विचारों की कमी नहीं है लेकिन नए विचारों को राष्ट्रवाद, धार्मिकता  में उलझाकर रखा जा रहा है. इस राष्ट्रवाद और धार्मिकता के जंजाल से बाहर निकलकर भारत को नए विचारों, नए विचारों को सत्य में लाने के लिए अपना किरदार अदा करना होगा. भारत में नए विचारों को महत्व दिए जाने पर और नए विचारों को सत्य बनाने में योगदान दिय जाने पर भारत विज्ञान के क्षेत्र में कई अहम बदलाव ला सकता है जो सभी के जीवन पर गहरी छाप छोड़ सकते है. इस तरह शुरुवात होने पर भारत नोबेल भी जरूर जीतेगा. नोबेल का अपना महत्व है पर सभी के जीवन पर असर करनेवाले खोज से ज्यादा नहीं.  


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