वेब सीरीज रुद्र द एज ऑफ डार्कनेस का ट्रेलर रिलीज(“Rudra - The Edge of Darkness"). इस वेब सीरीज से अजय देवगन (Ajay Devgn, Digital Debut) कर रहे हैं डिजिटल डेब्यू. रुद्र में अजय एक बार फिर कॉप लुक में नजर आ रहे हैं . अजय के अलावा में राशि खन्ना (Raashi Khanna), ईशा देओल (Esha Deol), अतुल कुलकर्णी, अश्विनी कालसेकर, तरुण गहलोत, आशीष विद्यार्थी और सत्यदीप मिश्रा प्रमुख भूमिकाओं में नज़र आएंगे. ‛रुद्र- द एज ऑफ डार्कनेस’ ब्रिटिश वेब सीरीज ‘लूथर’ की रीमेक है. ('Rudra - The Age of Darkness' is a remake of the British web series 'Luther'.)
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय गान, यानी 'जन गण मन' से जुडा एक अहम आदेश िदया था िक देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान ज़रूर बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राष्ट्रीय गान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा, तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़ा होना होगा। कोर्ट के व्दारा जबरदस्ती दिए गए इस फैसले का
विरोध करने तथा यह बात करने पर िक
हमारा इंन्सानी जीव के तौर पर जन्म होना और मानवी मूल्यों के साथ जीते हुए सामािजक परिवार को साथ लेकर विकास करना इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुच्छ भी नही।
पर अलग अलग राष्ट्र िनर्माण कर सभी को भावनात्मक बनाकर राष्ट्रवाद िनर्माण िकया गया।
भावनात्मक बनने की वजह से हमारी इंसानी जीव के तौर पर नैितक मूल्यों के साथ जीने की सोच भी खत्म होती जा रही, क्योंिक इंन्सान राष्ट्र, धर्म के नाम पर भावनात्मक होकर इन मूल्यों के साथ जीना भुलता जा रहा है। इंसान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है।
वो इंन्सानी जीव होने के सत्य को भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी।
इसलिए राष्ट्रवाद से डरना नही है बल्कि इसका इस्तेमाल होने से बचना है । इंन्सानी जीव होने के सत्य तथा मानवी मूल्यो के खो रहे िवचारों को आगे बढाना है तब सभी यही कह रहे थे िक यह अलग बात है तथा राष्ट्रगीत मे खडे होना ही चािहए पर सच्चाई यही है िक यह लोग अभी भी जाती ,धर्म मे फंसे हुए है ।
यह जालना में देखने िमला । महाराष्ट्र के एक बडे चैनल मे यह खबर है इसलिए उसका सीधा उपयोग यहा पर िकया । ye woh link hai 👉👉👉https://youtu.be/8_6EfBLrYUs
सुप्रीम कोर्ट के व्दारा राष्ट्रगान को जरूरी िकए जाने के बाद सभी खुद को भारतीय कह रहे थे लेिकन खुद भारतीय कहने वाले कुछ लोग की देशभक्ती बहुत स्पष्ट िदख रही है। भारत को अभी भी धर्म ,जाती से मुक्त होने की जरूरत है। महाराष्ट्र का एक उदाहरण इसलिए ही था । अप्रत्यक्ष रूप से यह राष्ट्रवाद से जुडा हुआ है।
अब राष्ट्रवाद को लेकर बाकी लोग कुछ भी कहे लेिकन रवींद्रनाथ ने राष्ट्रवाद को लेकर काफी कुछ अच्छी बाते स्पष्ट रुप से कही थी।
टैगोर खुद राष्ट्रवाद को मानवता के लिए ख़तरा मानते थे, इसी वजह से उन्होने यह कहा था िक
(1)इंसान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है. वो इसे भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी.
(2)जब मुल्क से प्यार का मतलब भक्ति या पवित्र कार्य में बदल जाए तब विनाश निश्चित है. मैं देश को बचाने के लिए तैयार हूं लेकिन मैं किसकी पूजा करूंगा ये मेरा अधिकार है जो देश से भी कहीं ज़्यादा बड़ा है.
(3)देशप्रेम हमारा आख़िरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता. मेरा आश्रय मानवता है. मैं हीरे के दाम में ग्लास नहीं ख़रीदूंगा और जब तक मैं ज़िदा हूं मानवता के ऊपर देशप्रेम की जीत नहीं होने दूंगा.
और आिखर में िफर एक बार रवींद्रनाथ टैगोर कि यह बात िलख रहा हूं िक
इंन्सान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है. वो इसे भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी.
रवींद्रनाथ टैगोर की बातो को सही तरीके से समझकर उन बेहतर िवचारों के साथ जीना है ।
राष्ट्रवाद का झूठा नाटक नही करना है ।
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विरोध करने तथा यह बात करने पर िक
हमारा इंन्सानी जीव के तौर पर जन्म होना और मानवी मूल्यों के साथ जीते हुए सामािजक परिवार को साथ लेकर विकास करना इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुच्छ भी नही।
पर अलग अलग राष्ट्र िनर्माण कर सभी को भावनात्मक बनाकर राष्ट्रवाद िनर्माण िकया गया।
भावनात्मक बनने की वजह से हमारी इंसानी जीव के तौर पर नैितक मूल्यों के साथ जीने की सोच भी खत्म होती जा रही, क्योंिक इंन्सान राष्ट्र, धर्म के नाम पर भावनात्मक होकर इन मूल्यों के साथ जीना भुलता जा रहा है। इंसान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है।
वो इंन्सानी जीव होने के सत्य को भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी।
इसलिए राष्ट्रवाद से डरना नही है बल्कि इसका इस्तेमाल होने से बचना है । इंन्सानी जीव होने के सत्य तथा मानवी मूल्यो के खो रहे िवचारों को आगे बढाना है तब सभी यही कह रहे थे िक यह अलग बात है तथा राष्ट्रगीत मे खडे होना ही चािहए पर सच्चाई यही है िक यह लोग अभी भी जाती ,धर्म मे फंसे हुए है ।
यह जालना में देखने िमला । महाराष्ट्र के एक बडे चैनल मे यह खबर है इसलिए उसका सीधा उपयोग यहा पर िकया । ye woh link hai 👉👉👉https://youtu.be/8_6EfBLrYUs
सुप्रीम कोर्ट के व्दारा राष्ट्रगान को जरूरी िकए जाने के बाद सभी खुद को भारतीय कह रहे थे लेिकन खुद भारतीय कहने वाले कुछ लोग की देशभक्ती बहुत स्पष्ट िदख रही है। भारत को अभी भी धर्म ,जाती से मुक्त होने की जरूरत है। महाराष्ट्र का एक उदाहरण इसलिए ही था । अप्रत्यक्ष रूप से यह राष्ट्रवाद से जुडा हुआ है।
अब राष्ट्रवाद को लेकर बाकी लोग कुछ भी कहे लेिकन रवींद्रनाथ ने राष्ट्रवाद को लेकर काफी कुछ अच्छी बाते स्पष्ट रुप से कही थी।
टैगोर खुद राष्ट्रवाद को मानवता के लिए ख़तरा मानते थे, इसी वजह से उन्होने यह कहा था िक
(1)इंसान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है. वो इसे भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी.
(2)जब मुल्क से प्यार का मतलब भक्ति या पवित्र कार्य में बदल जाए तब विनाश निश्चित है. मैं देश को बचाने के लिए तैयार हूं लेकिन मैं किसकी पूजा करूंगा ये मेरा अधिकार है जो देश से भी कहीं ज़्यादा बड़ा है.
(3)देशप्रेम हमारा आख़िरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता. मेरा आश्रय मानवता है. मैं हीरे के दाम में ग्लास नहीं ख़रीदूंगा और जब तक मैं ज़िदा हूं मानवता के ऊपर देशप्रेम की जीत नहीं होने दूंगा.
और आिखर में िफर एक बार रवींद्रनाथ टैगोर कि यह बात िलख रहा हूं िक
इंन्सान को हर हाल में यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो इंसान पहले है. वो इसे भुला कर सफलता तो पा सकता है मगर वो सफलता अस्थायी ही होगी.
रवींद्रनाथ टैगोर की बातो को सही तरीके से समझकर उन बेहतर िवचारों के साथ जीना है ।
राष्ट्रवाद का झूठा नाटक नही करना है ।
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