वेब सीरीज रुद्र द एज ऑफ डार्कनेस का ट्रेलर रिलीज(“Rudra - The Edge of Darkness"). इस वेब सीरीज से अजय देवगन (Ajay Devgn, Digital Debut) कर रहे हैं डिजिटल डेब्यू. रुद्र में अजय एक बार फिर कॉप लुक में नजर आ रहे हैं . अजय के अलावा में राशि खन्ना (Raashi Khanna), ईशा देओल (Esha Deol), अतुल कुलकर्णी, अश्विनी कालसेकर, तरुण गहलोत, आशीष विद्यार्थी और सत्यदीप मिश्रा प्रमुख भूमिकाओं में नज़र आएंगे. ‛रुद्र- द एज ऑफ डार्कनेस’ ब्रिटिश वेब सीरीज ‘लूथर’ की रीमेक है. ('Rudra - The Age of Darkness' is a remake of the British web series 'Luther'.)
सर्वोच्च न्यायालय ने चर्च कोर्ट के जरिए दिये जानेवाले तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। इस ऐतिहासिक फैसले को सुनते हुए न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के खंडपीठ ने कहा कि, गिरिजाघर की अदालत में क्रिश्चियन पर्सनल लॉ के तहत मंजूर किए गए तलाक वैध नहीं है। पर्सनल लॉ के कानून कानून की अवहेलना नहीं कर सकते ।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक कैथोलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष क्लारेंस पेस की तरफ से दायर की गयी याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चर्च कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के मामले को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले कहा कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट से मॉली जोसेफ बनाम जॉर्ज सेबेस्टियन के मामले में पहले ही फैसला दिया जा चुका है और इससे संबंधित व्यवस्था दी जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डिवॉर्स ऐक्ट आने के बाद से पर्सनल लॉ के तहत शादी खत्म करने के प्रावधान का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है।
इस ताजा मामले में सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की भी राय मांगी थी। केंद्र ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि ईसाई पर्सनल लॉ को भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1972 और तलाक अधिनियम, 1869 की जगह लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा था कि चर्च द्वारा तलाक को मान्यता दी जानी चाहिए।याचिकाकर्ता का कहना था की किसी गिरजाघर द्वारा मंजूर किए गए तलाक को उसी तरह वैध माना जाना चाहिए जैसा कि मुसलमानों के मामले में यानी ‘तीन तलाक’ के सिलसिले में है। लेकिन अदालत ने यह दलील भी खारिज कर दी। वैसे भी तीन तलाक का मामला कुछ महीनों से सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन है।
अदालत के इस फैसले से यह बात साफ़ है की संवैधानिक प्रावधान सबसे जरूरी है।
अदालत के इस फैसले से यह बात साफ़ है की संवैधानिक प्रावधान सबसे जरूरी है।

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